मैं पत्थर हूँ...
मैं पत्थर हूँ ...
लाखों बरसों की तपिश के बाद
जिस्म हुआ फौलादी मेरा
चुपचाप सहता रहा हूँ
धूल और अंगारों को
तूफानों से भी टकरा कर
अटल रहा,डिगा न अपने पथ से कभी
मानव सभ्यता का आरंभ
मेरे बिना अधूरा है
कालचक्र के अंकित इतिहास को
ढो़ता रहा अमिट करके
मेरे सीने पर उकेर कर
सभ्यताओं के महल खड़े कर
उल्लासित हो रहा मानव तू
क्या मेरे बिना ?
प्रगति पथ का तेरा पहिया चल सकता
अपनी प्रगति के हर नीव में
मेरी ही आहुति डाली तूने
पत्थर हूँ मैं कठोर हूं
पर विवश हूं मानव...
तेरे ही हाथों लिखा जाता भाग्य मेरा
तू चाहे तो कलाकृति बन
देव बन मैं पूजा जाऊं
या तेरा हथियार बन मैं
कलंक का भागीदार बनु मैं
तेरी मर्जी का कठपुतली
मैं पत्थर हूं पर अबोध हूँ !!!
-© Sachin Kumar
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