पुरानी किताब...


याद आई उन पुरानी किताबों की
जो पड़ी थी घर के एक कोने में
धूल में लिपटी हो चली मटमैली सी
झार पोछ कर इन किताबों को
सोचने लगा मैं लगा
वक्त की कोई कमी नहीं
क्यों ना आज पढ़ लू इन्हें
वक्त बीता पर ...
वही ताजगी लिए थी ये किताबें
शब्दों में वही ओज वही स्पंदन
जो बात करती हो मुझसे
एक पुराने दोस्त की तरह
और बताती है अपने में समेटे
उस समय के इतिहास को
किताबें कितनी भी पुरानी क्यों ना हो
इससे बेहतर कोई सच्चा दोस्त नहीं
जब भी फुर्सत मिले गुफ्तगू कर लीजिए !
                       
                              - सचिन कुमार ✒

#sachink951
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