कलिकाल



कलिकाल अपने चरम पर ,
हर मन में द्वंद्व उमड़ रहा,
तूफान हर दिल में उठा ,
चहुँ ओर मानवता कहारती,
निस्तेज हर शक्ल मनुज का,
नैतिकता का नहीं बोध-ज्ञान,
चरित्रवान पीड़ित यहाँ ,
रक्त रंजित समाज हो चुका ,
मनुष्यता पर घोर बिपदा छा गई ,
जब जब धर्म का नाश हुआ,
धर्म की स्थापना के लिए ,
तब तब ईश्वर अवतरित हुए,
अब तो मनुष्यता मांगती,
कोई अवतारी पुरुष यहां,
दुष्टों का नाश कर,
जो स्थापित कर सके
मानवता रूपी धर्म को ,
तब सुख शांति छा जाएगी,
खुशहाल होगा मानव का जीवन,
चारों तरफ धर्म का राज हो जाएगी ...!

                            ~© सचिन कुमार 🖋

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