संदेश

अप्रैल, 2020 की पोस्ट दिखाई जा रही हैं

हिमालय (कविता)

चित्र
बृहत विहंगम वन आच्छादित हिमालय की पर्वत श्रृंखलाएं हरियाली का चादर ओढ़े प्रकृति का अनुपम दृश्य जिसका पैर पखारे झील और झरने नदियों का तुम उद्गम  स्थल ऊंचे ऊंचे चोटी शोभित हिमखण्ड से ऋषि मुनियों की यह तपोभूमि देवताओं का है बास यहां पर देवभूमि तुम तभी कहलाते दिव्य अलौकिक कण-कण तेरा धरती का यह स्वर्ग धरा पर सनातन संस्कृति की ध्वजा तुमही हो बारंबार नमन इस पुण्य भूमि को !                               ~ © सचिन कुमार #हिमालय #देवभूमी   picture credit  : self          

बोधि वृक्ष(कविता)

              अटल खड़ा अमरत्व का पान किए पीपल का वृक्ष नहीं तू कोई साधारण तू साक्षी है स्वर्णिम भारत के इतिहास का तू साक्षी है जीवन की तकलीफों से निराश एक साधारण से पुरुष को देवत्व प्राप्ति का बुद्ध को बुद्धत्व प्राप्त करने का तू साक्षी है प्रकृति के उस गूढ़ रहस्य का प्रकृति और पुरुष के मिलन का जिससे ज्ञान की वह धारा निकली जो पूरे संसार को आलोकित कर गया तू साक्षी है प्रकृति और मानव के आत्मीय संबंध का एक तपस्वी की तपस्या तेरे ही छांव में फलीभूत होने का आज भी तेरे शरणागत को परम शांति की अनुभूति होती है प्रकृति हमें  शिक्षा देती है वृक्ष और मानव एक दूसरे के सहगामी है !                         - © सचिन कुमार नोट: बोधि वृक्ष बिहार के बोधगया स्थित महाबोधि मंदिर के परिसर में है,इसी वृक्ष के नीचे गौतम बुद्ध को ज्ञान की प्राप्ति हुई l #बोधि #वृक्ष #प्रकृति #बुद्ध         

ये जिंदगी (कविता)

चित्र
तिनका-तिनका सा, बिखरा हुआ था, ये ज़िंदगी, तेरे आने से ही संवरी ये जिंदगी, इस अँधेरी जि़दगी में तुम आई बन कर चिराग़ तुम से ही रौशन हुई , ये जिंदगी, अब तलक बेमकसद थी ये जिंदगी, तुम से ही मक़सद मिली इस जिंदगी को, तेरे बगैर अब तो अधूरी-अधूरी सी लगती हैं ये जिंदगी, तुम ही हो इस जिंदगी के हमसफ़र तेरे साये में कट जाए तमाम , ये जिंदगी..!!!                             -सचिन कुमार  picture credit : Pinterest      

बचपन

चित्र
सहज सरल निर्विकार बचपन  पुरानी किताब में रखी  पीपल के वो सूखे पत्ते याद दिलाती बचपन की भूली बिखरी यादें को पीपल की छांव तले दोस्तों संग खेलना सहज सरल निर्विकार बचपन कोई तो मुझको लौटा दे l आम के बागों में ताजे फलों का स्वाद वो कोयल की मीठी बोली ठंडी हवाओं में अल्लर सा बचपन दादी नानी के किस्से कहानियां बेफिक्र मस्ती भरे पल कोई तो मुझको लौटा दे l छतों पर सोना चांद तारों से बातें करना हंसी ठिठोली के पल बचपन की वो शरारतें बारिश में भीगना कोई तो मुझको लौटा दे l             -© सचिन कुमार  #बचपन   picture credit  : self  

पत्तियां

चित्र
            पेड़ पौधों का सबसे महत्वपूर्ण अंग पत्तियां फिर भी सबसे उपेक्षित हैं पत्तियां बिन पत्तियों के पेड़ का अस्तित्व वीरान उजार खंडहर की तरह हरियाली का ताज पेड़ो को मिलता है तुम्हीं से बाग बगीेचों की सुंदरता भी है तेरे कारण छोटी कोमल फिर भी बड़े काम की हैं ये पत्तियों तेरे ही आश्रय में ठंडी छाया प्राप्त हम करते जीवनदायिनी प्राण वायु का तुम हो स्रोत पेड़ पौधे के पोषण की तुम पर ही जिम्मेदारी कई प्रकार की औषधियों के लिए तुम पर हैं मानव आश्रित सभ्यता के आरंभ से मानव के लिए उपयोगी कई काव्य ग्रंथों की रचना भोजपत्र पर की गई धार्मिक कर्मकांड तेरे बिना अधूरे शिव शंभू भी तभी प्रसन्न होते जब अर्पित होता बेलपत्र शालिग्राम की पूजा भी तुलसी दल से होती पूरी कितना बखान करूं इन पत्तियों की छोटी होकर भी बहुत उपयोगी होती है पत्तियां..!                               - © सचिन कुमार  #पत्तियां #environment  picture credit : self     ...

प्रभु राम का बनवास

चित्र
        प्रभु राम का राज्याभिषेक होना था, सज धज कर थी तैयार अयोध्या , इस शुभ घड़ी की बेला में , चहुँ ओर था उल्लास उमंग, जन-जन में थी बड़ी कौतूहल कब सूर्यवंश शिरोमणि सिंहासनारूढ़ होगें किसे पता था ?नियति को था कुछ और मंजूर अपने पुत्र मोह में मोहित कुटिल केकैयी ने राजा दशरथ से मांगा लिया एेसा वरदान जो थी कल्पना से परे एक कुठाराघात भरत का हो राज्याभिषेक राम को चौदह वर्ष का हो वनवास यह सुन संपूर्ण अयोध्या थी शोकाकुल पिता की आज्ञा पाकर भी प्रभु राम क्षण मात्र के लिए बिचलित न हुए पिता के बचन निभाने को राजतिलक को ठुकरा कर चल पड़े वन की ओर प्रभु  पग पग था  कठोर संघर्ष नहीं देखा ऐसा कोई आज्ञाकारी पुत्र तभी तो तुम कहलाते मर्यादा पुरुषोत्तम जीवन का आदर्श तुम्ही हो मेरे प्रभु राम !!!                      - ©Sachin Kumar Picture credit : Pinterest   #राम      

जिंदगी

चित्र
जिंदगी में मिला हर कदम पर ठोकर राह में पड़े पत्थरों की तरह चला मैं दुनिया करने को रौशन जलना पड़ा मुझे दीपक की तरह काटें में रह कर मुस्कुराता रहा मैं  बागों में खिले फूलों की तरह झूठों की बस्ती में सच्चाई पर अडिग रहा मैं तूफानों के बीच खड़े पहाड़ों की तरह बिखरी हुई मेरी इस जिंदगी को कोई तो उठाले मुझे मोतीयों की तरह !                       -©Sachin Kumar  picture credit : self

पुरानी किताब...

चित्र
याद आई उन पुरानी किताबों की जो पड़ी थी घर के एक कोने में धूल में लिपटी हो चली मटमैली सी झार पोछ कर इन किताबों को सोचने लगा मैं लगा वक्त की कोई कमी नहीं क्यों ना आज पढ़ लू इन्हें वक्त बीता पर ... वही ताजगी लिए थी ये किताबें शब्दों में वही ओज वही स्पंदन जो बात करती हो मुझसे एक पुराने दोस्त की तरह और बताती है अपने में समेटे उस समय के इतिहास को किताबें कितनी भी पुरानी क्यों ना हो इससे बेहतर कोई सच्चा दोस्त नहीं जब भी फुर्सत मिले गुफ्तगू कर लीजिए !                                                       - सचिन कुमार ✒ #sachink951  picture credit  : self

मैं पत्थर हूँ...

चित्र
                         मैं पत्थर हूँ ... लाखों बरसों की तपिश के बाद जिस्म हुआ फौलादी मेरा चुपचाप सहता रहा हूँ धूल और अंगारों को तूफानों से भी टकरा कर अटल रहा,डिगा न अपने पथ से कभी मानव सभ्यता का आरंभ मेरे बिना अधूरा है कालचक्र के अंकित इतिहास को ढो़ता रहा अमिट करके मेरे सीने पर  उकेर कर सभ्यताओं के महल खड़े कर उल्लासित हो रहा मानव तू क्या मेरे बिना ? प्रगति पथ का तेरा पहिया चल सकता अपनी प्रगति के हर नीव में मेरी ही आहुति डाली तूने पत्थर हूँ  मैं कठोर हूं पर विवश हूं मानव... तेरे ही हाथों लिखा जाता भाग्य मेरा तू चाहे तो कलाकृति बन देव बन मैं पूजा जाऊं या तेरा हथियार बन मैं कलंक का भागीदार बनु मैं तेरी मर्जी का कठपुतली मैं पत्थर हूं पर अबोध हूँ !!!                           -© Sachin Kumar #पत्थर #मानव #sachink951